stories for class 4 and 5
इसे मुफ्त दे दूंगा
कला के ज्ञाता भगवान बुद्ध को एक बार एक अनोखा विचार सूझा।
उन्हें यह जानने की उत्सुकता हुई कि पृथ्वी वासी दूसरे देवताओं की तुलना में
उनका अंकन किस प्रकार करते हैं।
अतः मनुष्य का रूप धारण कर वे भू-लोक पर अवतरित हुए।
घूमते-विचरते वे एक शिल्पकार के संग्रहालय में जा पहंचे। वह शिल्पकार देवी-देवताओं की प्रतिमाएं बनाने
के लिए विख्यात था। भगवान बुद्ध ने अनेक देवी-देवताओं की प्रतिमाएं उसके संग्रहालय में देखीं।
उन्हीं में उनकी भी एक प्रतिमा थी।
उन्हें यह जानने की उत्सुकता हुई कि पृथ्वी वासी दूसरे देवताओं की तुलना में
उनका अंकन किस प्रकार करते हैं।
अतः मनुष्य का रूप धारण कर वे भू-लोक पर अवतरित हुए।
घूमते-विचरते वे एक शिल्पकार के संग्रहालय में जा पहंचे। वह शिल्पकार देवी-देवताओं की प्रतिमाएं बनाने
के लिए विख्यात था। भगवान बुद्ध ने अनेक देवी-देवताओं की प्रतिमाएं उसके संग्रहालय में देखीं।
उन्हीं में उनकी भी एक प्रतिमा थी।
बुद्ध शिल्पकार के निकट आकर बोले-'भगवान शंकर जी की प्रतिमा का क्या दाम है?'
शिल्पकार ने उत्तर दिया-'पचास रुपये।' 'और देवी पार्वती की प्रतिमा का?' बुद्ध ने पूछा। 'पच्चीस रुपये।'
शिल्पकार ने कहा। फिर उन्होंने अपनी प्रतिमा की ओर संकेत करते हुए पूछा-'इसका क्या मूल्य है?'
शिल्पकार ने उत्तर दिया-'यदि आप ये दोनों ही प्रतिमाएं खरीद लें तो साथ में भगवान बुद्ध की प्रतिमा मुफ्त
में दे दूंगा।'
शिल्पकार ने उत्तर दिया-'पचास रुपये।' 'और देवी पार्वती की प्रतिमा का?' बुद्ध ने पूछा। 'पच्चीस रुपये।'
शिल्पकार ने कहा। फिर उन्होंने अपनी प्रतिमा की ओर संकेत करते हुए पूछा-'इसका क्या मूल्य है?'
शिल्पकार ने उत्तर दिया-'यदि आप ये दोनों ही प्रतिमाएं खरीद लें तो साथ में भगवान बुद्ध की प्रतिमा मुफ्त
में दे दूंगा।'
शिल्पकार का यह उत्तर सुनकर भगवान बुद्ध मुस्कराते हुए वहां से अदृश्य हो गए।
बच्चो इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है की-:
स्व-मूल्यांकन करने में कोई बुराई नहीं। लेकिन हमारे गुणावगुणोंका आकलन दूसरे ही बेहतर ढंग से कर सकते हैं।
मुर्ख गधे की हठ
एक धोबी अपने गधे के साथ पहाडी रास्ते से जा रहा था। वह गधे के पीछे-पीछे हाथ में || डंडा लिए चल रहा था। कुछ दूरी तक तो गधा बिल्कुल सधे कदमों से चलता रहा। अचानक नजाने उसे क्या सूझी कि वह रास्ते से हटकर किनारे-किनारे चलने लगा। धोबी ने उसे रास्ते पर लाने का बहुत प्रयास किया। लेकिन गधा अपने हठीले स्वभाव के कारण सीधे रास्ते पर नहीं आया। अतः वह चलता-चलाता एक ऊंची चट्टान पर चढ़ गया, जिसके एक ओर गहरी खाई थी। धोबी ने गधे के ऊपर मंडराते खतरे को देखा तो वह परेशान हो उठा। लेकिन उसे कोई उपाय नहीं सूझा कि क्या करे। अतः उसने पीछे जाकर गधे की पूंछ पकड ली और उसे पीछे खींचने लगा।
धोबी ने एड़ी-चोटी का जोर लगाकर गधे की पूंछ खींची, लेकिन गधे ने एक कदम भी पीछे न हटाया। निराश होकर धोबी ने गधे को यह कहते हुए छोड़ दिया-'मुर्ख गधे! मैं तझे बचाने का प्रयास कर रहा हूं, लेकिन तू अपनी जान देने पर तुला है। यदि तुझे मरना ही है तो जा मर।'
इस प्रकार मूर्ख गधे ने हठीले स्वभाव के कारण अपने शुभचिंतक की बात न मानकर अपने | प्राण गंवा दिए।
बच्चो इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है की-:
किसी अच्छे काम के लिए हठ करने में कोई बुराई नहीं, लेकिन प्राणों को संकट में डाल देने का हठ भला किस काम का!
चापलसों से बचें
सर्दियों के दिन थे। धूप का आनंद लेते हुए एक झींगुर पेड़ की डाली पर बैठा गीत गा रहा था। उसी समय एक लोमड़ी वहां से गुजर रही थी। झींगुर को देखते ही लोमड़ी के मुंह में पानी आ गया। लेकिन वह झींगुर पेड़ की ऊंची शाख पर बैठा था। अतः लोमड़ी ने उसे नीचे उतारने के लिए धूर्तता भरी चाल सोची।
झींगुर के गीत की प्रशंसा करते हुए धूर्त लोमड़ी बोली-'कितना सुरीला स्वर है तुम्हारा।' 'धन्यवाद।' झींगुर ने कहा।
'कपा करके आप नीचे आ जाएं, मैं आपको अपना मित्र बनाना चाहती हूं।' लोमड़ी बोली। - समझदार झींगुर उसकी चाल समझ गया। वह बोला-'धूर्त लोमड़ी! मैं तुम्हारे जाल में फंसने वाला नहीं हूं। तुमसे दूर रहने में ही मेरा हित है। मुझे यह बात उसी दिन सूझ गई थी, जिस दिन मैंने अपने कुछ भाइयों के पंख तुम्हारी खोह के बाहर पड़े देखे थे।' झींगुर की यह बात सुनकर लोमड़ी उसकी ओर ताकती रह गई।
बच्चो इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है की-:
कदम उठाने से पहले सोचें
एक तालाब के दलदल में दो मेढक रहते थे। वे दोनों वहां बड़े आनंद में अपना जीवन बिता रहे थे। न उन्हें किसी बात की चिंता थी और न ही किस्मत से कोई शिकायत।
दूसरा मेढक बहुत ही समझदार था। उसने अपनी बुद्धिमानी का परिचय देते हुए कहा-'भैया! इतनी शीघ्रता अच्छी नहीं। दलदल सूखने पर हमें पुराना घर छोड़ना पड़ा. अगर हम यहां रहने लगे और कुएं का पानी सूख गया तो हम बाहर कैसे आएंगे?'
'कपा करके आप नीचे आ जाएं, मैं आपको अपना मित्र बनाना चाहती हूं।' लोमड़ी बोली। - समझदार झींगुर उसकी चाल समझ गया। वह बोला-'धूर्त लोमड़ी! मैं तुम्हारे जाल में फंसने वाला नहीं हूं। तुमसे दूर रहने में ही मेरा हित है। मुझे यह बात उसी दिन सूझ गई थी, जिस दिन मैंने अपने कुछ भाइयों के पंख तुम्हारी खोह के बाहर पड़े देखे थे।' झींगुर की यह बात सुनकर लोमड़ी उसकी ओर ताकती रह गई।
बच्चो इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है की-:
चापलूसी करने वाला कभी आपका हितैषी नहीं हो सकता। उसकी बातें स्वार्थ सिद्धि के लिए ही होती हैं।
कदम उठाने से पहले सोचें
लेकिन जैसे ही गर्मियों के दिन आए, तालाब का दलदल सूखने लगा। एक दिन दलदल पूरा तरह सूख गया। अब मेढकों को चिंता सताने लगी कि वे अपना आवास कहाँ बनाए। उन्हें विवश होकर वह स्थान छोड़ना पड़ा। अपने लिए नया घर ढूंढते -ढूंढते वे दोनों एक कुएं के निकट जा पहुंचे। कुएं के किनारे बैठकर उन दोनों ने भीतर की ओर झांका। कुएं में पानी ऊपर तक था।
एक मेढक खशी में झमता हुआ दूसरे से बोला-'भैया देखो! इस कुएं में कितना ऊपर तक पानी है। यह हमारे रहने के लिए उचित स्थान है। यह स्थान सुरक्षा की दृष्टि से भी ठीक है। आओ इसके भीतर चलें।' दूसरा मेढक बहुत ही समझदार था। उसने अपनी बुद्धिमानी का परिचय देते हुए कहा-'भैया! इतनी शीघ्रता अच्छी नहीं। दलदल सूखने पर हमें पुराना घर छोड़ना पड़ा. अगर हम यहां रहने लगे और कुएं का पानी सूख गया तो हम बाहर कैसे आएंगे?'
दूसरे मेढक की बात सुनकर पहले वाले का सिर शर्म से झुक गया।
बच्चो इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है की-:
बच्चो इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है की-:
कुछ भी करने-कहने से पहले सोच-विचार लें कि ऐसा करने याकहने का नतीजा क्या होगा।
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