साहसी बालक और भेड़िया
एक खूंखार भेड़िया ने एक जानवर का शिकार किया। इसलिए वह प्रसन्न हो कर घूमते-घूमते जंगल से बाहर निकल आया। तभी उसने नजदीक के मैदान में एक लड़के को खड़ा हुए देखा।
वह दबे पाँव उस लड़के के पास जा पहुंचा। वह लड़का उस ख़ूँख़ार भेड़िया को देख भयभीत हो गया। उसने डर के मारे अपना मुंह दूसरी तरफ फेर लिया। धूर्त भेड़िया समझ गया कि लड़का उसे देखकर भयभीत हो गया है।
तभी भेड़िया ने उस बालक से कहा-'अब तुम मुझसे बचकर नहीं जा सकते। अगर तुम मुझे ऐसी तीन बातें बता दो जिन्हें असत्य प्रमाणित नहीं किया जा सकता, तो मैं तुम्हें छोड़ दूंगा।'
खंखार भेड़िया को देख बालक का डर के मारे बुरा हाल था।
अतः उसने अपने-आपको संभाला और साहस से बोला-'पहली बात तो यह है कि तुमने मुझे देख लिया, यह खेद की बात है। दूसरी, मैंने अकारण तुम्हारी नजर में आने की मूर्खता की। तीसरी और आखिरी बात यह है कि तुम्हारे क्रूर और खूखार स्वभाव के कारण सभी मनुष्य तुमसे घृणा करते हैं।'
उसकी बातें सुनकर भेड़िया सोचने लगा-'यह बालक बहुत ही विलक्षण बुद्धि है। जिसने मृत्यु को साक्षात देखते हुए भी तीनों बातें सत्य कहीं, जिन्हें झुठलाया नहीं जा सकता।'
वह खूखार भेड़िया उस बालक से बोला-'बालक! तुमने मृत्यु को सामने देखते हुए भी अपनी विलक्षण बुद्धि का परिचय दिया है, इसलिए मैं तुम्हारे प्राण बख्शता हूं।'
शिक्षा-:
संकट के समय हाथ-पैर छोड़ देने से काम नहीं चलता।
बुद्धि-विवेक से काम लेने पर संकट टल जाता है।
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