तीसमारखां-story in hindi for kids with moral

तीसमारखां


उसका नाम गुल्लू खां था। लेकिन एक बार उसने अपने ही पशुओं के बाडे में सबके सामने तीस मच्छरों को गिन-गिनकर मारा था। तभी से उसका नाम 'तीसमारखां' पड़ गया। कहने को तो वह अंगूठा टेक था लेकिन जब बात करता था तो अच्छे-अच्छे पढ़े-लिखों को भी निरुत्तर कर देता। काम-धंधा कुछ भी नहीं करता था। जैसा उसका नाम था उसी के अनुरूप करिश्मे करके वह जिंदगी गुजर करता था।
जब भी किसी पर कोई मुसीबत आती तो तीसमारखां को ढूंढा जाता था। ऐसे ही एक बार कुम्हार का गधा  गुम हो गया। गुम क्या हुआ था-चरने गया तो वापस ही नहीं लौटा। चोरों की एक टोली उसे चुराकर ले गई और बेचकर मौज उड़ाने लगी।
कुम्हार ने तीसमारखां के आगे अपना दुखड़ा रोया तो उसने उसे सांत्वना दी और गधे को ढूंढने जंगल की ओर चल पड़ा। तभी आकाश में बादल छा गए और बारिश होने लगी। मोटी-मोटी बौछारों से बचने के लिए वह 'टपकडा आया-टपूकड़ा आया' चिल्लाता हुआ एक सघन वृक्ष की ओट में छिप गया। उसी पेड की आड में एक खूखार शेर भी छिपा बैठा था।
शेर ने जब 'टपूकड़ा' शब्द सुना तो वह हैरान-परेशान हो गया।
उसने समझा कि शायद तीसमारखां ही टपूकड़ा होगा।
क्योंकि इससे पहले उसने यह शब्द नहीं सुना था और न ही इस नाम के किसी जानवर को उसने देखा था।
इसलिए वह शेर उससे बचता-बचाता वहीं दुबका पड़ा रहा।
  इधर अंधेरा होने के कारण तीसमारखां ने समझा कि यही होगा कुम्हार का गधा, जिसे वह ढूंढ़ता फिर रहा है।
उसने उस शेर का कान पकड़ा और कुम्हार के घर के बाहर रस्सी से बांध दिया।
जब खूंखार शेर के पकड़े जाने की खबर राजा के पास पहुंची तो वह बड़ा प्रसन्न हुआ।
राजा ने उस शेर को पकड़ने वाले को विशेष ईनाम देने की घोषणा पहले ही कर रखी थी।
उसने तीसमारखां को महल में बुलाया और ईनाम देकर अपना प्रमुख सेवक नियुक्त किया।

शिक्षा-:


कई बार अनजाने में ही मनुष्य ऐसा काम कर जाता है की वास्तिविकता सामने आने पर उसे खुद ही आश्चर्य होता है|

moral of this story-:

Many times, inadvertently, a man does such a thing that he himself is surprised when reality comes to the fore.

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