चार मित्र
किसी नगर में चार मित्र रहते थे। वे चारों ही पढ़ने काशी गए। उनमें से तीन तो महाविद्वान बनकर लौटे, लेकिन एक मित्र की रुचि पढ़ने में नहीं थी। अत: वह शास्त्रज्ञानी नहीं बन सका, लेकिन बुद्धि का वह धनी था।
अपने नगर में लौटकर तीन मित्रों ने निर्णय किया कि यहां तो हमारे ज्ञान का महत्व कोई भी नहीं समझता।क्यों न किसी दूसरे नगर में जाकर अपने ज्ञान के बल पर धनार्जन किया जाए। तभी चौथा मित्र भी वहां आ पहुंचा और बोला कि मैं भी साथ चलूंगा।
तब उनमें से एक बोला, 'तुम्हें शास्त्र ज्ञान नहीं है, दूसरे नगर में जाकर कैसे धनार्जन करोगे। तुम यहीं रहो तो अच्छा है।'
इस पर एक अन्य मित्र बोला, 'इसने शास्त्र ज्ञान नहीं पाया तो क्या हुआ, बुद्धि तो इसमें हम तीनों से अधिक है। यह बुद्धि के बल पर धनार्जन करेगा।
इस प्रकार चारों मित्र दूसरे नगर के लिए चल पड़े। चलते-चलते वे एक निर्जन वन में पहुंचे।
वहां उन्होंने एक शेर मरा देखा। संभवत: वह कई दिनों का मरा पड़ा था, अत: जंगली जानवरों का भोजन बन चुका था। यही कारण था कि उसकी हड्डियां कहीं पड़ी थीं तो खाल कहीं।
चारों मित्र उस मृत शेर के कंकाल के पास बैठ गए और कुछ सोचने लगे। फिर शास्त्रज्ञानी तीन मित्रों ने परस्पर कहा, 'हमें इस शेर पर अपने ज्ञान का परीक्षण करना चाहिए।' __एक बोला, 'मैं इसकी हड्डियों को जोड़ सकता हूं।'
दूसरा बोला, 'मैं उन जुड़ी हड्डियों पर खाल चढ़ा सकता हूं।' तीसरा बोला, 'तब तो काम बन गया। मैं इसमें प्राण फूंक सकता हूं।'
उन तीनों की बातें सुनकर चौथ मित्र बोला, 'अरे, पहले यह तो सोचो कि यदि यह जीवित हो गया तो हमारा क्या होगा। हम सबको खा जाएगा यह।'
तब तीनों मित्र बोले, 'तो क्या हम अपने ज्ञान का परीक्षण न करें। तुम तो हमेशा ही ऐसी बेसिर-पैर की हांकते रहते हो।'
और तीनों मित्रों ने उसकी बात पर कोई ध्यान नहीं दिया तथा अपने-अपने काम में लग गए। जब तीसरा मित्र उसमें प्राण फूंकने लगा तो चौथा बोला, 'अब भी सोच लो।
यदि शेर में प्राण पड़ गए तो वह किसी को भी जीवित नहीं छोड़ेगा।' इतना कहकर वह पास के एक पेड़ पर जा चढ़ा। तभी तीसरे मित्र ने मृत शेर में प्राण फूंक दिए। प्राण पड़ते ही वह शेर अंगड़ाई लेकर उठखड़ा हुआ और सामने खड़े उन तीनों मित्रों पर झपट पड़ा।
तीनों जब भागने लगे तो और भी उनके पीछे दौड़ने लगा और अंतत: तीनों को अपना शिकार बना लिया।लेकिन चौथा मित्र अपनी बुद्धि के बल पर जीवित बच गया।
Four friends lived in a city. They all went to Kashi to study. Three of
them returned as Mahavidvans, but one friend was not interested in reading.
Therefore, he could not become a scholar, but he was rich in intelligence.
Returning to their city, three friends decided that no one here understands the
importance of our knowledge.
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तब उनमें से एक बोला, 'तुम्हें शास्त्र ज्ञान नहीं है, दूसरे नगर में जाकर कैसे धनार्जन करोगे। तुम यहीं रहो तो अच्छा है।'
इस पर एक अन्य मित्र बोला, 'इसने शास्त्र ज्ञान नहीं पाया तो क्या हुआ, बुद्धि तो इसमें हम तीनों से अधिक है। यह बुद्धि के बल पर धनार्जन करेगा।
इस प्रकार चारों मित्र दूसरे नगर के लिए चल पड़े। चलते-चलते वे एक निर्जन वन में पहुंचे।
वहां उन्होंने एक शेर मरा देखा। संभवत: वह कई दिनों का मरा पड़ा था, अत: जंगली जानवरों का भोजन बन चुका था। यही कारण था कि उसकी हड्डियां कहीं पड़ी थीं तो खाल कहीं।
चारों मित्र उस मृत शेर के कंकाल के पास बैठ गए और कुछ सोचने लगे। फिर शास्त्रज्ञानी तीन मित्रों ने परस्पर कहा, 'हमें इस शेर पर अपने ज्ञान का परीक्षण करना चाहिए।' __एक बोला, 'मैं इसकी हड्डियों को जोड़ सकता हूं।'
दूसरा बोला, 'मैं उन जुड़ी हड्डियों पर खाल चढ़ा सकता हूं।' तीसरा बोला, 'तब तो काम बन गया। मैं इसमें प्राण फूंक सकता हूं।'
उन तीनों की बातें सुनकर चौथ मित्र बोला, 'अरे, पहले यह तो सोचो कि यदि यह जीवित हो गया तो हमारा क्या होगा। हम सबको खा जाएगा यह।'
तब तीनों मित्र बोले, 'तो क्या हम अपने ज्ञान का परीक्षण न करें। तुम तो हमेशा ही ऐसी बेसिर-पैर की हांकते रहते हो।'
और तीनों मित्रों ने उसकी बात पर कोई ध्यान नहीं दिया तथा अपने-अपने काम में लग गए। जब तीसरा मित्र उसमें प्राण फूंकने लगा तो चौथा बोला, 'अब भी सोच लो।
यदि शेर में प्राण पड़ गए तो वह किसी को भी जीवित नहीं छोड़ेगा।' इतना कहकर वह पास के एक पेड़ पर जा चढ़ा। तभी तीसरे मित्र ने मृत शेर में प्राण फूंक दिए। प्राण पड़ते ही वह शेर अंगड़ाई लेकर उठखड़ा हुआ और सामने खड़े उन तीनों मित्रों पर झपट पड़ा।
तीनों जब भागने लगे तो और भी उनके पीछे दौड़ने लगा और अंतत: तीनों को अपना शिकार बना लिया।लेकिन चौथा मित्र अपनी बुद्धि के बल पर जीवित बच गया।
शिक्षा-:
बड़ी-बड़ी डिग्रियां हासिल कर लेना योग्यता का सही पैमाना नहीं। असली योग्यता तो परिस्थितिनुसार बुद्धि का प्रयोग करने में है।
Four friends
Why not go to another city and earn on the strength of our
knowledge. Then the fourth friend also came there and said that I will also go
together. Then one of them said, 'You don't have knowledge of scripture, how
will you earn money by going to another city. It is good if you stay here.
On
this another friend said, 'If he did not get the knowledge of the scriptures,
what happened, the intellect is more than the three of us. It will earn on the
strength of intelligence. Thus the four friends left for another city. While
walking, he reached a deserted forest. There he saw a dead lion. Probably he
was dead for several days, so the food of the wild animals had become. This was
the reason that his bones were laying somewhere else then the skin.
The four friends sat near the skeleton of the dead lion and
started thinking. Then three friends of the philosopher mutually said, 'We must
test our knowledge on this lion.' One said, 'I can add bones to it’.
The second said, “I can skin those connected bones”. The
third said, “Then work is done. I can breathe life into it”.
Hearing the words of all three, fourth friend said, “Hey,
first think what will happen to us if it becomes alive. It will eat us all”.
Then the three friends said, "Should we not test our
knowledge? You are always talking like nonsense”
And the three friends paid no attention to his words and
started doing their work. When the third friend started burning his life in it,
the fourth said, 'Still think. If lion become alive, it will not leave anyone
alive’. Having said this, he climbed a nearby tree. Then the third friend burnt
life in the dead lion. The lion got up.
He stood up and pounced on the three friends standing in
front. When the three started running, they started running after them and
eventually all three became their victims.
But
the fourth friend survived on the strength of his intellect.
Moral of the story-:
Achieving large degrees is not the right measure of competence. The real merit is in using intelligence according to circumstances.
i hope you like this story thank you.
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