मनसुख पंडित और बालजी बल्लू
किसी गांव में मनसुख नामक एक पंडित रहता था। उसकी बालजी बल्लू से गहरी मित्रता थी। लेकिन बालजी बल्लू था महामूर्ख। मनसुख पंडित जहां कहा भा जाता । पीछे हो लिया करता था।
एक बार मनसुख पंडित ने किसी कार्यवश शहर जाने का मन बनाया। यह भनक बालजी बल्लू को लग गई और वह भी धोती, कुरता और माटा साफा बांधकर उसके साथ चलने लगा। मनसख पंडित ने बहुत मना किया कि तुम मेरे साथ मत चलो, लेकिन बालजी बल्लू कहां मानने वाला था। मना करते-करते भी वह मनसुख के साथ चल पड़ा।
दोनों अभी आधी दूरी ही तय कर पाए थे कि एकाएक बालजी बल्लू चलते-चलते रुक गया। मनसुख ने पूछा, 'क्या हुआ बल्लू? रुक क्यों गए?'
बल्लू बोला, पंडितजी, ‘मेरे पैर आपस में झगड़ रहे हैं। दायां पैर कहता है कि मैं नेता हूं और बायां पैर कहता है कि मैं नेता हूं। अब आप ही बताइए मैं किस पैर की बात मानूं?'
मनसुख पंडित बोला, 'इन पैरों की नेतागिरी के चक्कर में तुम एक कदम भी आगे न बढ़ पाओगे। क्यों फिजूल की बातों में वक्त जाया करते हो।' यह कहते हुए मनसुख पंडित ने उसे धकेला तो वह आगे-आगे चलने लगा।
शहर पहुंचकर दोनों एक सराय में रुके। बल्लू ने पंडितजी का आभार व्यक्त किया जिनकी । कृपा से उसके पैरों का झगड़ा खत्म हुआ और बल्लू सराय तक पहुंच सका। फिर उसने मनसुख से पूछा, 'पंडितजी! आपने ऐसा क्या चमत्कार किया कि मेरे पैर चलने के लिए राजी हो गए और अब मैं आपके साथ यहां हूं।'
मनसुख ने अपनी खोपड़ी की ओर संकेत करते हुए कहा, 'बल्लू! यह चमत्कार इस बटलोई का है।'
'तो फिर यह बटलोई मुझे दे दो न। मैं आपका गहरा मित्र जो हूं।' बालजी बल्लू बोला।
मनसुख पंडित बोला, 'बल्लू, यह बटलोई जिसे मिलती है, उसी के लिए काम करती है। यदि चाहो तो मैं तुम्हें इस बटलोई द्वारा बुद्धि का मंत्र फूंक सकता हूं। इस तरह कुछ समय बाद तुम भी बुद्धिमान हो जाओगे।
बल्लू बोला, 'पंडितजी, फंकी गई चीज तो तुरंत बाहर निकल आती है। अब आप ही देखिए कि भगवान श्वास (सांस) फूकता है लेकिन वह भी बाहर निकल आता है।'
बल्लू की उल्टी-सीधी बातें सुनते-सुनते मनसुख पंडित को नींद आ गई।
जब मनसुख पंडित सो गया तो बालजी बल्लू ने सोचा कि यदि इस बटलोई को छिपा दूं तो कैसा रहेगा। पंडितजी अपने कंधों से बटलोई का बोझ हल्का हुआ जानकर आश्चर्यचकित रह जाएंगे। जब बटलोई को ढूंढेंगे तो बड़ा आनंद आएगा। मुझसे पूछेगे तो मैं उन्हें चिढ़ाते हुए कहूंगा, बटलोई तो ये रही।
यह विचार बल्लू के दिमाग में आते ही उसने मनसुख पंडित का सिर धड़ से अलग कर दिया और उसे कमरे के एक कोने में दुबका दिया। फिर मनसुख पंडित के जागने का इंतजार करने लगा।
जब काफी समय हो गया और मनसुख पंडित नहीं जागा (जागता भी कैसे? धड़ से शीश अलग होने पर वह तो मर चुका था) तो बल्लू के दिल की धड़कन तेज हो गई। वह.सोचने लगा कि यह क्या हुआ? अभी वह सोच ही रहा था कि सराय का मालिक उस कमरे में आया और मनसुख पंडित की हत्या हुई देख सूचना थाने में दे दी। पुलिस आई और उसने बालजी बल्लू को गिरफ्तार कर न्यायालय में पेश किया जहां उसे मृत्युदंड मिला।
शिक्षा-:
किसी मूर्ख से समझदारी भरी बातें करना अपने प्राणों
को संकट में डालने जैसा है।
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