आत्मविश्वास क्या है और यह क्यों महत्वपूर्ण है? | Self Confidence Meaning In Hindi

 आत्मविश्वास अर्थात् 'अपने पर भरोसा'। ऐसा भरोसा व्यक्ति में 'स्वयं पहल' करने की भावना को जन्म देता है, स्वतंत्र चिंतन की प्रेरणा बनता है और तब उसके व्यवहार में परिलक्षित होने लगती है- 'स्वप्रेरित आत्मनिर्भरता'। आत्मविश्वासी व्यक्ति के आचरण में विनम्रता, शालीनता और शिष्टता के साथ-साथ विपरीत विचार रखने वाले व्यक्ति के प्रति सम्मान-भाव तथा सहिष्णुता भी कम नहीं होती। ये ही बातें दंभी और आत्मविश्वासी व्यक्ति के अंतर को रेखांकित करती हैं।



 आत्मविश्वासी की अभिव्यक्ति व्यक्ति के साहस, उसकी श्रमनिष्ठा और कुछ कर गुज़रने के लिए प्रेरित करने की ललक में देखी जा सकती है। आत्मविश्वास का उदय जब व्यक्ति के अंतर्मन में होता है, तो वह अथक परिश्रम कर लक्ष्य प्राप्ति के लिए प्राण-प्रण से जुट जाता है। आत्मविश्वास उत्साहवर्धक भावना है। यह व्यक्ति को स्वावलंबी बनाता है इसके पनपते ही व्यक्ति असंभव दिखाई देने वाले कार्य को भी संभव बनाने में सफलता प्राप्त कर लेता है।

महाभारत के समय की बात है। एक दिन गुरु द्रोणाचार्य वन में अपने शिष्यों को धनुर्विद्या का अभ्यास करा रहे थे। तभी भील बालक एकलव्य वहाँ आ पहुँचा। उसके मन में धनुर्विद्या सीखने की अदम्य आकांक्षा थी। इसके लिए द्रोण से बढ़कर प्रवीण गुरु तब था भी कौन? एकलव्य ने अत्यंत विनम्रता के साथ प्रणाम करते हुए गुरुदेव से धनुर्विद्या सिखाने के लिए निवेदन किया। लेकिन आचार्य तो राजपुत्रों के गुरूदेव थे। वे एकलव्य को धनुर्विद्या सीखने की स्वीकृति कैसे दे सकते थे। एकलव्य निराश नहीं हुआ वह उनकी विवशता को समझ रहा था। उसके मन में गुरूदेव के प्रति अश्रद्धा का भाव भी नहीं पनपा।

उसने मिट्टी की एक मूर्ति बनाई और उसे ही गुरुदेव मानकर पूरी लगन से धनुर्विद्या का अभ्यास करने निरंतर अभ्यास जोवंत आस्था तथा कड़े परिश्रम को फलीभूत तो होना ही था। उसने धनुर्विद्या में निपुणता हासिल नहीं की वरन् इस क्षेत्र में नए प्रयोग भी किए. जिन्हें देख पांडवों के साथ-साथ द्रोण भी अचंभित रह गए थे।

संसार में ऐसे कितने ही व्यक्ति हुए हैं, जो विपन्नता और कठिन परिस्थितियों के बीच रहकर भी आत्मविश्वास और आस्था के बल पर प्रगति करते हुए चरम उत्कर्ष पर पहुंचे हैं। निर्बल मन व्यक्ति हर काम को असंभव समझने लगता है, जबकि आत्मविश्वासी असंभव को भी संभव बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ता।

इतिहास साक्षी है कि मनुष्य के दृढ़ संकल्प के सम्मुख देव-दानव सभी पराजित होते आए हैं। मनुष्य की बात तो दूर, चींटी जैसे लघुतम प्राणी को ही देखें। अपने से भारी कणों को लेकर दीवार पर चढ़ती है, गिरती है, फिर चढ़ती है, फिर गिरती है। पर उसका आत्मविश्वास खंडित नहीं होता। अंत में वह अपने उद्देश्य में सफल हो जाती है। अब्राहम लिंकन की ही बात लीजिए। लोग उनकी कल्पनाओं की हँसी उड़ाते रहते थे। उन्हें हवाई किले बनाने वाला व्यक्ति समझते थे। लेकिन वे तो व्यवहारिक धरातल पर जीने वाले चिंतक थे- "सच्चे राष्ट्रवादी और अपनी धुन के पक्के"। उन्होंने कभी भी लोगों के ऐसे विचारों की परवाह नहीं की। वे चुनाव में बार-बार हारे, तब भी उन्होंने अपना आत्मविश्वास नहीं खोया। अंततः वे अमेरिका के राष्ट्रपति चुन लिए गए। उन्हें अपनी कल्पनाओं और सपनों को साकार करने का अवसर मिल गया।

विश्वास जीवन है और अविश्वास मृत्यु। केवल विश्वास ही ऐसा संबल है, जो हमें लक्ष्य तक पहुँचाता है। विश्वास ही वह औषधि है, जो रोगी को रोगमुक्त कराती है| प्रोफ़ेसर राममूर्ति का नाम स्मरण करते ही उस बलशाली व्यक्ति की तस्वीर सामने आ जाती है, जो रेल के इंजन को अपने हाथों की शक्ति से रोक लेता था। भरे हुए ट्रक को खींच सकता
था। बचपन में वे अक्सर बीमार रहते थे। उनकी माता ने पौराणिक शौर्य गाथाएँ सुना-सुनाकर उनमें कुछ क गुज़रने का विश्वास जाग्रत किया। इसी आत्मविश्वास के बल पर वे असंभव दिखने वाले कार्यों को पूरा सर्वप्रिय और विशिष्ट बन गए।

याद रखिए हमारी शारीरिक और मानसिक दुर्बलता के लिए अन्य कोई उत्तरदायी नहीं, हम स्वयं ही है, यदि आप में राई के कण जितना भी आत्मविश्वास है, तो फिर कोई कार्य असंभव कैसे रहेगा? देश में जितने प्रसिद्ध वैज्ञानिक, दार्शनिक, नेता, अभिनेता, गीतकार, चिकित्सक, लेखक इत्यादि हुए हैं, उन्हें भी प्रारंभ में लो के चने चबाने पड़े हैं। जिन्हें आप सुखी, सफल, यश, कीर्ति के शिखर पर पहुँचा हुआ देखते हैं, वे सब हमेश अपने आत्मविश्वास पर दृढ़ रहने वाले लोग रहे हैं। उनका नाम आज भी सम्मान के साथ लिया जाता है। लोगों के लिए उनकी जीवन-शैली आदर्श बन गई।

आइए, हम भी अपने आत्मविश्वास को जगाएँ। आदमी कहीं भी जाए उसके बैठने के ढंग, बोल-चा तथा दूसरों के प्रति किए गए व्यवहार से उसका आत्मविश्वास झलकता है। उसी से समाज में उसकी कीम बढ़ती है। मन में बड़ी-बड़ी इच्छाएँ जाग्रत होती हैं। उन्हें पूरी भी किया जा सकता है। ज़रूरत है, तो सिर्फ़ स्वयं के आत्मविश्वास को दृढ़ करने की।

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