Mahabharat katha| Dropadi-swayamvar | chapter 11

  जिस समय पांडव एकचक्रा नगरी में ब्राह्मणों के वेष में जीवन बिता रहे थे, उन्हीं दिनों पांचाल-नरेश की कन्या द्रोपदी के स्वयंवर की तैयारियाँ होने लगी। एकचक्रा नगरी के ब्राह्मणों के झुंड पांचाल देश के लिए रवाना हुए। पांडव भी उनके साथ ही हो लिए। पाँचों भाई माता कुंती के साथ किसी कुम्हार की झोंपडी में आ टिके। पांचाल देश में भी पांडव ब्राह्मण-वेश ही धारण किए रहे। इस कारण कोई उनको पहचान न सका।


स्वयंवर-मंडप में एक वृहदाकार धनुष रखा हुआ था, जिसकी डोरी तारों की बनी हुई थी। ऊपर काफ़ी ऊँचाई पर एक सोने की मछली टंगी हुई थी। उसके नीचे एक चमकदार यंत्र बड़े वेग से घूम रहा था। राजा द्रुपद ने घोषणा की थी कि जो राजकुमार पानी में प्रतिबिंब देखकर उस भारी धनुष से तीर चलाकर ऊपर टांगे हुए निशाने (मछली) को गिरा देगा, उसी को द्रोपदी वरमाला पहनाएगी । इस स्वयंवर के लिए दूर-दूर से अनेक वीर आए हुए थे। 

मंडप में सैकडों राजा इकट्ठे हुए थे जिनमें धृतराष्ट्र के सौ बेटे, अंग-नरेश कर्ण, श्रीकृष्ण, शिशुपाल, जरासंध आदि भी शामिल हुए थे। दर्शकों की भी भारी भीड़ थी। राजकुमार धृष्टद्युम्न घोडे पर सवार होकर आगे आया। उसके पीछे हाथी पर सवार द्रोपदी आई। हाथ में फूलों का हार लिए हुए राज़कन्या हाथी से उतरी और सभा में पदार्पण किया। राजकुमार धृष्टद्युम्न अपनी बहन का हाथ पकड़कर उस मंडप के बीच में ले गया। 


इसके बाद एक-एक करके राजकुमार उठते और धनुष पर डोरी चढाते, हारते और अपमानित होकर लौट जाते। कितने ही सुप्रसिद्ध वीरों को इस तरह मुँह की खानी पडी। शिशुपाल, जरासंध, शल्य व दुर्योधन जैसे पराक्रमी राजकुमार तक असफल हो गए। जब कर्ण की बारी आई, तो सभा में एक लहर-सी दौड़ गई। सबने सोचा, अंग-नरेश ज़रूर सफल हो जाएँगे। कर्ण ने धनुष उठाकर खड़ा कर दिया और तानकर प्रत्यंचा भी चढानी शूरू कर दी। डोरी के चढाने में अभी बालभर की ही कसर रह गई थी कि इतने में धनुष का डंडा उसके हाथ से छूट गया तथा उछलकर उसके मुँह पर लगा। 

अपनी चोट सहलाता हुआ कर्ण अपनी जगह पर जा बैठा।


इतने में उपस्थित ब्राह्मणों के बीच से एक तरुण उठ खड़ा हूआ। ब्राह्मणों की मंडली में ब्राह्मण वेषधारी अर्जुन को यों खड़ा होते देखकर सभा में बड़ी हलचल मच गई। लोगों में तरह-तरह की चर्चा होने लगी। तब अर्जुन ने धनुष हाथ में लिया और उस पर डोरी चढा दी। उसने धनुष पर तीर चढाया और आश्चर्यचकित लोगों को मुसकराते हुए देखा। लोग उसे देख रहे थे। उसने और देरी न करके तुरंत एक के बाद एक पाँच बाण उस घूमते हुए चक्र में मारे और हजारों लोगों के देखते-देखते निशाना टूटकर नीचे गिर पड़ा। सभा में कोलाहल मच गया। बाजे बज उठे। 


उस समय राजकुमारी द्रोपदी की शोभा कुछ अनूठी हो गई। वह आगे बढी और सकुचाते हुए लेकिन प्रसन्नतापूर्वक ब्राह्मण-वेष में खड़े अर्जुन को वरमाला पहना दी। माता को यह समाचार सुनाने के लिए युधिष्ठिर, नकुल और सहदेव तीनों भाई मंडप से उठकर चले गए । परंतु भीम नहीं गया। उसे भय था कि निराश राजकुमार कहीं अर्जुन को कुछ कर न बैठे। भीमसेन का अनुमान ठोक ही निकला। राजकुमारों में बडी हलचल मच गई। उन्होंने शोर मचाया। 


राजकुमारों का जोश बढता गया। ऐसा प्रतीत हुआ कि भारी विप्लव मच जाएगा। यह हाल देखकर श्रीकृष्ण , बलराम और कुछ राजा" विप्लव मचानेवाले राजकुमारों को समझाने लगे। वे समझाते रहे और इस बीच भीम और अर्जुन द्रोपदी को साथ लेकर कुम्हार की कुटिया को और चल दिए। जब भीम और अर्जुन द्रोपदी को साथ लेकर सभा से जाने लगे . 


तो द्रुपद का पुत्र धृष्टद्युम्न चुपके से उनके पीछे हो लिया। कुम्हार की कुटिया में उसने जो देखा, उससे उसके आश्चर्य की सीमा न रही। वह तुरंत लौट आया और अपने पिता से बोला -“पिता जी, मुझे तो ऐसा लगता है कि ये लोग लही पांडव न हों!बहन द्रौपदी उस युवक की मृगछाला पकड़े जब जाने लगी, तो मैं भी उनके पीछे हो लिया। वे एक कुम्हार कि झोपड़ी में का पहुंचे। वहां अग्नि-शिखा की भांति एक तेजस्वी देवी बैठी हुई थीं। वहां जो बाते हुई, उनसे मुझे विश्वाश हो गया है कि वह  कुंती देवी ही होनी चाहिए।”

   

तब राजा द्रुपद के बुलावा भेजने पर पांचों भाई, माता कुंती और द्रौपदी को साथ लेकर राज भवन पहुंचे। युधिष्ठिर ने राजा को अपना सही परिचय दे दिया। यह जानकर कि ये पांडव हैं। राजा द्रुपद फूल ना समाए। उनकी इच्छा पूरी हुई। महाबली अर्जुन मेरी बेटी के पति हो गए हैं, तो फिर द्रोणाचार्य की शत्रुता की मुझे चिंता नहीं रही! यह विचारकर उन्होंने 

   संतोष सांस ली। मां की आज्ञा और सब की सम्मति से द्रौपदी के साथ पांचों पांडवो का विवाह हो गया। 

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