समुद्र किनारे बसे एक गाँव में एक धनवान सेठ रहता था| उस धनवान सेठ के पुत्रों ने एक कौआ पाल रखा था| सेठ के पुत्र रोज अपने भोजन से बचा कुछ अन्न कौए को दे देते थे|
सेठ के घर की जूठन खा-खा कर वह कौआ कुछ ही दिनों में मोटा और तंदरुस्त हो गया था| रोज सेठ के घर से भोजन मिलने पर कौए का अहंकार बहुत बढ़ गया| अब कौआ अपने से श्रेष्ठ पक्षियों को भी तुच्छ समझने लगा| अब आए दिन कौआ अपने से श्रेष्ठ पक्षियों का अपमान करने लगा|
एक दिन समुद्र किनारे कुछ हंसों का जोड़ा उड़ता हुआ आया और एक पेड़ पर जाकर बैठ गया| हंसों का जोड़ा बहुत खुबसूरत था| हंसों की खूबसूरती देख सेठ के पुत्र हंसों की तारीफ करने लगे|
यह बात कौए को नागवार गुजरी| वह मन ही मन हंसों से इर्ष्या करने लगा| हंसों से इर्ष्या करते हुए वह दोनों हंसों में से जो सबसे ताकतवर हंस प्रतीत हुआ उसके पास गया|
हंसों के पास जाकर कौआ हंस से बोला, “तुम केवल खूबसूरती में मुझसे अच्छे हो सकते हो लेकिन ताकत में, मैं तुमसे ज्यादा ताकतवर हूँ में तुम्हारे साथ उड़ने की प्रतियोगिता करना चाहता हूँ|
हंसों ने कौए को समझाया की वह उनके साथ प्रतियोगिता नहीं कर सकता! क्यों की वह आसमान में बहुत दूर-दूर तक उड़ता हैं। उनके साथ प्रतियोगिता करने से उसे कोई लाभ नहीं है| वह उनके साथ प्रतियोगिता कर के अपनी जान जोखिम में न डालें|
हंस की बात सुनकर कौआ गर्व से बोला, “मैंने उड़ने की कई सारी कलाएँ सीखी है| तुम मेरी नहीं अपनी चिंता करो! क्या तुम मेंरी बराबरी कर पाओगे ?
हंस कौए की बात सुनकर मुस्कुराया और बोला, "मित्र! हो सकता है की तुम उड़ने की कई सारी कलाएँ जानते होंगे लेकिन में तो सिर्फ एक कला जनता हूँ जिससे सभी पक्षी उड़ते हैं। में उसी कला से उडान भरूँगा|
हंस की बात सुनकर कौए का अभिमान और बढ़ गया! वह बोला, "हंस तुमने जीवन में उड़ने की ज्यादा कलाएँ नहीं सीखी है इसलिए में तुम्हें आसानी से हरा दूंगा| अब तुम हार देखने के लिए तैयार हो जाओ|
उनकी बातें सुनकर कई पक्षी इस प्रतियोगिता को देखने के लिए वहां जमा हो गए| सभी पक्षियों के सामने हंस और कौआ दोनों समुद्र की ओर उड़े।
पक्षियों को देखकर कौआ कई तरह की कलाबाजियां दिखता हुआ आसमान में उड़ने लगा और देखते ही देखते हंस से आगे निकल गया|
हंस अभी भी हमेशा की तरह अपनी सामान्य गति से ही उड़ रहा था| यह देखकर वहां उपस्थित कई सारे कौए प्रसन्नता व्यक्त करने लगे|
कुछ ही दूर में कौए के पंख थकने लगे| वह विश्राम करने के लिए अपने आसपास पेड़ की डालियों को खोजने लगा| लेकिन विशाल समुद्र में वह काफी आगे निकल आया था| उसे अपने आसपास सिर्फ पानी ही पानी नज़र आ रहा था|
इतने समय में हंस उड़ता हुआ कौए से आगे निकल गया| कौए की गति काफी धीमी हो गई थी| थकान के कारण अब उसके पंखों ने भी जवाब देना शुरू कर दिया था|
अब कौआ पानी के सबसे करीब उड़ने लगा| कौए के पैर अब पानी में डूबने लगे थे| कौए को डूबता देख हंस कौए के करीब आया और बोला|" मित्र! तुम्हारे पैर और पंख बार-बार पानी में डूब रहें हैं| यह तुम्हारी कौन सी कला है|"
हंस की बात सुनकर कौआ बड़ी ही ग्लानी के साथ बोला|" मित्र! मुझे माफ कर दो, हम कौए सिर्फ कांव-कांव करना जानते हैं। हम भला इतनी ऊँची उड़न कैसे भर सकते हैं|
मुझे अपनी गलती का अहसास हो गया है| हे मित्र! मुझपर दया करो| में डूबने वाला हूँ कृपा कर मेरे प्राण बचा लो|"
जल में डबते हए अचेत कौए को देखकर हंस को दया आ गई। उसने कौए को अपने पैरों में पकड़ कर समुद्र किनारे छोड़ दिया|
Wonderful story
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