hindi poem pyari maa |Happy mother's day


माँ

hindi poem pyari maa
चुपके-चुपके मन ही मन में 

खुद को रोते देख रहा हूँ

 बेबस होके अपनी माँ को बूढ़ा होते देख रहा हूँ

रचा है बचपन को आँखों में 

खिल-खिला सा माँ का रूप

 जैसे जाड़े के मौसम में 

नरम-गरम मखमल सी धूप

 धीरे-धीरे सपनों के इस 

रूप को खोते देख रहा हूँ

 बेबस होके अपनी माँ को 

बूढ़ा होते देख रहा हूँ

छूट-छूट गया है धीरे-धीरे

माँ के हाथ का खाना भी

 छीन लिया है वक्त ने उसकी

 बातों भरा खजाना भी 

घर की मालकिन को

घर के कोने में सोते देख रहा हूँ

 चुपके-चुपके मन ही मन में 

खुद को रोते देख रहा हूँ 

बेबस होके अपनी माँ को 

बूढ़ा होते देख रहा हूँ

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