अमूल दूध का इतिहास | अमूल के संस्थापक| Amul

 भारत एक कृषिप्रधान देश है। आज भी भारत की ज़्यादातर जनता गाँवों में रहती है। खेती एवं पशुपालन उसके दो मुख्य व्यवसाय हैं। स्वतंत्रता के पश्चात भारत में सामान्य जन को स्पर्श करने वाली मुख्यतः दो क्रांतियाँ हुई हैं- पहली हरित क्रांति तथा दूसरी श्वेत क्रांति। हरित क्रांति का सीधा संबंध अनाज उत्पादन से है, जिसमें पंजाब राज्य का मुख्य योगदान है; जबकि श्वेत क्रांति का सीधा संबंध दूध उत्पादन से है, इसमें गुजरात राज्य का मुख्य योगदान है।


प्राचीन समय से आज तक ग्रामीण भारतीय जनता के मुख्य आर्थिक आधार खेती तथा पशुपालन ही रहे हैं। भारतीय जनता आज भी गाय को माता मानती है तथा उसकी पूजा करती है। गाय का दूध ही नहीं, मूत्र भी पवित्र माना जाता है। ग्रामीण भारतीय जनता का एक मुख्य व्यवसाय पशुपालन होने के बावजूद स्वतंत्रता मिलने के पश्चात भारत में सामान्य जनता को पर्याप्त मात्रा में दूध उपलब्ध नहीं था। जिस प्रकार हरित क्रांति लाकर भारत को अनाज के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाया गया, उसी प्रकार श्वेत क्रांति द्वारा भारत को दूध के क्षेत्र में स्वावलंबी बनाया गया तथा सामान्य जनता को पर्याप्त मात्रा में दूध मिल सके, इसके प्रयास किए गए।

स्वतंत्रता के पश्चात भारत के प्रत्येक राज्य में डेरी उद्योग का विकास हुआ है, परंतु जो कमाल गुजरात में आनंद की 'अमूल डेरी' ने किया, वह बेमिसाल है। दूसरे शब्दों में कहा जाए, तो भारत में अमूल डेरी का विकास ही श्वेत क्रांति का विकास है। अतः भारत में डेरी उद्योग के विकास को अथवा श्वेत क्रांति के विकास को समझना हो, तो हमें 'अमूल ''डेरी' की विकास गाथा को समझना होगा।

'अमूल' को 'अमूल्य' कहें, तो कुछ गलत नहीं होगा, क्योंकि आज आनंद को 'दूधनगरी' तथा 'अमूल डेरी' को विश्व स्तर की एवं एशिया खंड की सबसे बड़ी डेरी का दर्जा मिल चुका है। भारत में श्वेत क्रांति के विकास में तथा अमूल डेरी को विश्व स्तर तक ले जाने में जिन दो महानुभावों क सबसे ज्यादा योगदान रहा है, वे हैं-सेवामूर्ति त्रिभुवनदास पटेल तथा डॉ० वर्गीज कुरियन । त्रिभुवनदास ने देखा कि दूध के नाम पर गरीब तथा निरक्षर प्रजा को लूटा जा रहा है। दूध को ज्यादा समय तक संग्रह नहीं किया जा सकता, इससे ग्रामीण जनता नुकसान तथा कष्ट सहन करके भी दूध बेच दिया करती थी । त्रिभुवनदास एक स्वतंत्रता सेनानी थे। वे महात्मा गांधी तथा सरदार वल्लभभाई पटेल के अनुयायी तथा सहकारिता आंदोलन के प्रणेता भी था उनसे किसानों का दुख देखा नहीं गया। वे पूर्ण रूप से मानते थे कि 'सहकार के बिना उद्धार नहीं है' एवं 'एकता में शक्ति होती है।' उन्होंने गाँव-गाँव जाकर खेड़ा जिले की ग्रामीण प्रजा को पशुपालन तथा दूध का महत्व समझाया. तथा 'सहकारी मंडली' बनाने का सुझाव दिया।

जैसा कि ज्यादातर होता है, प्रारंभ में त्रिभुवनदास पटेल अपने काम में सफल न हों, इसके लिए विरोधियों द्वारा पूरे प्रयत्न किए गए, परंतु निस्स्वार्थ भाव से काम करने वाले सेवामूर्ति त्रिभुवनदास अपने लक्ष्य पर अडिग रहे। ईश्वर भी बराबर कसौटी करके फल देता है, इसीलिए कहा जाता है कि 'ईश्वर के घर देर तो है, परंतु अँधेर नहीं है।' खेड़ा जिले की ग्रामीण जनता का उनकी बातों में विश्वास बैठा तथा 14 दिसंबर, 1946 ई० के दिन 'खेड़ा जिला सहकारी दूध उत्पादक संघ लि.' नामक संस्था का रजिस्ट्रेशन हुआ तथा इसी दिन से भारत में सच्चे अर्थों में श्वेत क्रांति का प्रारंभ हुआ। कुछ हद तक 'अमूल डेरी' का प्रारंभ भी इसी दिन से माना जा सकता है। वैसे औपचारिक रूप से विधिवत अमूल डेरी का प्रारंभ वर्ष 1950 में भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ० राजेंद्र प्रसाद जी के करकमलों द्वारा किया गया था।

त्रिभुवनदास पटेल अपने काम में लगातार लगे रहे तथा ग्रामीण मंडलियाँ स्थापित करते रहे। इस बीच उनकी मुलाकात डॉ० वर्गीज कुरियन से हुई, जो शायद त्रिभुवनदास के लिए फ़रिश्ता बनकर आए थे। भारत में श्वेत क्रांति के शिल्पी यदि त्रिभुवनदास पटेल को माना जाए, तो डॉ. वर्गीस कुरियन को उसका कर्णधार मानना चाहिए। त्रिभुवनदास पटेल ऐसा प्रयत्न करते थे कि अधिक-से-अधिक दूध सहकारी में आए तथा उस दूध का सर्वोत्तम उपयोग हो, यह भूमिका डॉ० कुरियन ने अदा की। श्वेत क्रांति तथा डेरी उद्योग के विकास में त्रिभुवनदास तथा डॉ० कुरियन की जोड़ी को 'अमर जोड़ी' कहा जा सकता है। डॉ० कुरियन तो केरल के थे तथा उनकी मातृभाषा मलयालम थी, फिर भी उन्होंने त्रिभुवनदास पटेल के साथ मिलकर खेड़ा जिले की ग्रामीण जनता का दिल जीत लिया। किसान ही सच्चे मालिक हैं- इस बात को ग्रामीण जनता भी समझने लगी तथा सहकारी मंडलियों में नियमित रूप से दूध भेजने लगी। इस प्रकार किसान आर्थिक रूप से समृद्ध होने लगे तथा सहकारिता के महत्व को समझने लगे।

यदि सच्चे दिल से समाज हित का कार्य किया जाए, तो समर्थन अवश्य मिलता है। अधिक मात्रा में दूध आने के कारण आर्थिक समस्याएँ आईं, परंतु केंद्र सरकार तथा विश्व बैंक जैसी संस्थाओं से मदद मिलती रही। 1950 ई० में लगाया गया 'अमूल' नाम का अंकुर, आज वटवृक्ष बनकर खड़ा है। अमूल की सफलता को ध्यान में रखकर भारत सरकार ने वर्ष 1965 में आनंद में ही 'नेशनल डेरी डेवलपमेंट बोर्ड' की स्थापना की। यह एक राष्ट्रीय संस्था है, जिसका उद्देश्य दूध उत्पादन के साथ-साथ भारत में 'कृषि अर्थतंत्र' को सुधारना भी है।

आज अमूल केवल दुग्ध उत्पादन तक ही सीमित नहीं रहा है, अपितु यह अन्य उत्पाद, जैसे-दूध पाउडर, दही, घी, मक्खन, चीज, आइसक्रीम, सूप इत्यादि भी सफलतापूर्वक बेच रहा है। अमूल की इस सफलता ने पूरे भारत में डेरी उद्योग को एक नई दिशा दी तथा इससे पूरे देश में श्वेत क्रांति का बड़े पैमाने पर विकास हुआ। आज तो गुजरात में ही अमूल डेरी की तरह साबर डेरी, सागर डेरी, बनास डेरी, बड़ौदा डेरी आदि सफलतापूर्वक कार्यरत हैं। भारत के अन्य राज्यों में भी डेरी उद्योग के विकास में अमूल का बड़ा योगदान है। आज देश-विदेश के लोग 'अमूल डेरी' की प्रत्यक्ष मुलाकात के लिए प्रतिदिन आते हैं। आज अमूल डेरी के कारण लाखों की रोज़ी-रोटी चल रही है। सर्वेक्षणों के आधार पर मालूम पड़ा है कि खेड़ा तथा आनंद जिले की 40 प्रतिशत आर्थिक समृद्धि केवल अमूल के कारण ही है। अमूल के शिल्पी त्रिभुवनदास पटेल तथा उसके कर्णधार डॉ॰ वर्गीज़ कुरियन को कई राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय सम्मान प्रदान किए गए। त्रिभुवनदास पटेल तो 1967 ई० से 1974 ई० तक राज्यसभा के सदस्य भी रहे थे।

अंत में, इतना कहा जा सकता है कि अमूल डेरी की सफलता के कारण भारत में जो श्वेत क्रांति आई, उससे किसान वर्ग की आर्थिक स्थिति सुधरी तथा डेरी उद्योग का विकास देश में विशाल पैमाने पर हुआ। आज तो भारत के घर-घर में है 'amul'  दूध का पर्यायवाची बन चुका है तथा देश का बच्चा-बच्चा इसको जानता 

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