पांचों पांडव तथा धृतराष्ट्र के सौ पुत्र , जो कौरव कहलाते थे, हस्तिनापुर में साथ-साथ रहने लगे । खेलकूद , हंसी...मजाक सब में वे साथ ही रहते थे। शरीर-बल में पांडु का पुत्र भीम सबसे बढ़कर था। भाइयों को खूब तंग किया करता। खेलों में वह दुर्योधन और उसके भाइयों को खूब तंग किया करता। यद्धपि भीम मन में किसी से वैर नहीं रखता था और बचपन के जोश के कारण ही ऐसा करता था, फिर भी दुर्योधन तथा उसके भाइयों के मन में भीम के प्रति दुवेषभव बढ़ने लगा। इधर सभी बालक उचित समय आने पर कृपाचार्य से अस्त्र-बिद्या के साथ…साथ अन्य विद्याएँ भी सीखने लगे। विद्या सीखने में भी पांडव कौरवों से आगे ही रहते थे। इससे कौरव और खीझने लगे। दुर्योधन पांडवों को हर प्रकार से नीचा दिखाने का प्रयत्न करता रहता था । भीम से तो उसकी ज़रा भी नहीं पटती थी। एक बार सब कौरवों ने आपस में सलाह करके यह निश्चय किया कि भीम को गंगा में डुबोकर मार डाला जाए और उसके मरने पर युधिष्ठिर-अर्जुन आदि को कैद करके बंदी बना लिया जाए। दुर्योधन ने सोचा कि ऐसा करने से सारे राज्य पर उनका अधिकार हो जाएगा।
एक दिन दुर्योधन ने धूमधाम से जल-क्रीड़ा का प्रबंध किया और पाँचों पांडवों को उसके लिए न्यौता दिया । बडी देर तक खेलने और तैरने के बाद सबने भोजन किया और अपने-अपने डेरों में जाकर सो गए । दुर्योधन ने छल से भीम के भोजन में विष मिला दिया था। सब लोग खूब खेले-तैरे थे, सो थक-थकाकर सो गए । भीम को विष के कारण गहरा नशा हो गया। वह डेरे पर भी न पहुँच पाया और नशे में चूर होकर गंगा-किनरि रेत मैं ही गिर गया। उसी हालत में दुर्योधन ने लताओं से उसके हाथ-पैर बांधकर उसे गंगा में बहा दिया । लताओं से जकड़ा हूआ भीम का शरीर गंगा की धारा में बहता हुआ दूर निकल गया। इधर दुर्योधन मन-ही-मन यह सोचकर खुश हो रहा था कि भीम का तो काम ही तमाम हो गया होगा। जब युधिष्ठिर आदि जागे और भीम को न पाया , तो चारों भाइयों ने मिलकर सारा जंगल तथा गंगा का वह किनारा, जहाँ जल-क्रीड़ा की थी , छान डाला। पर भीम का कहीं पता न चला। अंत में निराश होकर दुखी हदय से वे अपने महल को लौट आए। इतने में ही क्या देखते हैं कि भीम झूमता-झामता चला आ रहा है। पांडवों और कुंती के आनंद का ठिकाना न रहा!
युधिष्ठिर, कुंती आदि ने भीम को गले से लगा लिया। पर यह सब हाल देखकर कुंती को बडी चिंता हूई। उसने विदुर को बुला भेजा और अकेले में उनसे बोली- “दुष्ट दुर्योधन ज़रूर कोई न कोई चाल चल रहा है। राज्य के लोभ में वह भीम को मार डालना चाहता है। मूझे इसकी चिंता हो रही है।”
राजनीति-कुशल विदुर कुंती को समझाते हुए बोले- “तुम्हारा कहना सही है, परंतु कुशल इसी में है कि इस बात को अपने तक ही रखो। प्रकट रूप से दुर्योधन की निंदा कदापि न करना, नहीं तो इससे उसका" द्वेष और बढ़ेगा।”
इस घटना से भीम बहुत उत्तेजित हो गया था। उसे समझाते हुए युधिष्ठिर ने कहा-" भाई भीम , अभी समय नहीं आया है। तुम्हें अपने आपको सँभालना होगा। इस समय तो हम पाँचों भाइयों को यही करना है कि किसी प्रकार एक-दूसरे की रक्षा करते हुए बचे रहे। ”
भीम के वापस आ जाने पर दुर्योधन को बड़ा आश्चर्य हूआ। उसका हदय और जलने लगा।
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