कार्तिक महीने के देव-उठावनी एकादशी का दिन तुलसी विवाह के रूप में मनाया जाता है। जो मनुष्य शालिग्राम के साथ तुलसी का विवाह करेगा उसे इस लोक और परलोक में विपुल यश प्राप्त होगा। तुलसी विवाह के संबंध में कई कथाएं प्रचलित हैं। तुलसी विवाह की कथा का यह वीडियो तुलसी शालिग्राम विवाह की दो कहानियाँ प्रस्तुत करता है। पहली तुलसी विवाह की कहानी ननद-भाभी की है। दूसरी तुलसी विवाह की कहानी रानी वृंदा की तुलसी में रूपांतरित होने की प्रसिद्ध कहानी है। आइए हम तुलसी शालिग्राम विवाह कथा देखते हैं और तुलसी से प्रार्थना करते हैं कि वे हमें आशीर्वाद दें जैसे कि उन्होंने तुलसी विवाह में अपने भक्त को आशीर्वाद दिया Tulsi Vivah can be performed once a year only on Dev Uthani ekadashi day. Tulsi Vivah is performed on Kartik maas Shukla Ekadashi. This video of Tulsi vivah ki katha presents two stories of Tulsi Shaligram vivah. The first Tulsi vivah ki kahani is about a lady and her sister in law. The second Tulsi vivah ki kahani is famous story of Queen Vrinda transforming into Tulsi. Let us watch Tulsi Shaligram marriage story and pray to Tulsi to bless us like she blessed her devotee in Tulsi Vivah ki kahani.
पहली कहानी -
एक परिवार में एक ननंद सच्चे मन से तुलसी मां की विशेष पूजा करती थी लेकिन उसकी भाभी को यह सब पसंद नहीं था| वह अक्सर गुस्से में अपने ननंद को कोसते हुए कहती थी कि दहेज में वह अपनी ननंद को तुलसी का गमला ही देगी| यही नहीं वह बारातियों को भी खाने के लिए तुलसी ही देगी| समय का चक्र बड़ा बलवान है आखिर ननंद के विवाह करीबी आ ही गया| भाभी ने बारातियों के सामने तुलसी का गमला फोड़ दिया| तुलसी का गमला सवादिष्ट व्यंजनों में बदल गया | भाभी को यह रास नहीं आया उन्होंने ननंद के गहनों की जगह तुलसी की मंजरी पहना दी | मंजरी की जगह सोने के आभूषण बन गए| इसके बाद भाभी ने ननंद के सामने जनेऊ रख दी| वो जनेऊ रेशमी वस्त्रों में बदल गया| जब उसके ननंद अपने ससुराल में पहुंची तो वहां पर उसकी बहुत बढ़ाई हुई| उसके बाद भाभी को भी तुलसी पूजा का महत्व समझ आ ही गया| कहते हैं यदि आपके मन में श्रद्धा नहीं है तो पूजा करने से फल- फूल चढ़ाने से या स्वादिष्ट व्यंजन बनाने से कोई लाभ नहीं मिलता लेकिन अगर मन में श्रद्धा और विश्वास हो तो एक फूल भी बहुत कुछ होता है| उसके बाद भाभी ने अपनी बेटी को भी तुलसी जी की पूजा करने के लिए कहा परंतु उसकी बेटी ने उसकी एक न सुनी |जब उसकी बेटी के विवाह का समय आया तो उसने सोच कि वह अपनी बेटी के साथ वही व्यवहार करेगी जो उसने अपनी ननंद के साथ किया था| तो तुलसी मां उसकी बेटी को भी आशीर्वाद देंगे यह सोचकर भाभी ने अपनी बेटी के विवाह में वही सब किया लेकिन तुलसी का गमला टूटा का टूटा ही रहा और मंजरी सोने के आभूषण बनने की बजाय मंजरी ही रह गयी और जनेऊ भी जनेऊ ही रहा | समाज में बेटी और उसके परिवार जनों की बहुत निंदा हुई और सभी को खूब खरी-खोटी सुननी पड़ी| इतना सब कुछ होने के बाद भी भाभी ने कभी अपनी नंनद को घर पर नहीं बुलाया| एक दिन भाई ने सोचा क्यों ना वही अपनी बहन से मिलने चला जाए| उसने अपनी पत्नी से अपने मन की बात कही और कुछ उपहार स्वरूप ले जाने के लिए कहा इस पर भाभी ने उसे झोले में ज्वार रख कर दे दिया| भाई को बहुत दुख हुआ | उसने सोचा कि वह बहन के घर ज्वार लेकर कैसे जाए| उसने रास्ते में एक गौशाला में गाय के सामने झोला पलट दिया| मां तुलसी की कृपा से वह सारा ज्वर बहुत ही सुंदर-सुंदर उपहारों तथा सोने-चांदी के आभूषणों में बदल गया| तब गोपालक ने कहाँ कि वह सोना चांदी तथा उपहार गाय को क्यों दे रहा है| तब भाई ने देखा और उसके आश्चर्य का ठिकाना ना रहा उसने गोपालन को सारी बात बताई| तब गोपालक बोला यह सब तुलसी मां की कृपा है| भाई भी खुशी-खुशी अपनी बहन के घर गया उसके द्वारा लाए हुए उपहार देखकर उसकी बहन तथा ससुराल वाले बहुत खुश हुए | हे! तुलसी मैया जैसे आपने ननंद पर कृपा की उसी प्रकार अपनी कृपा सब पर बनाए रखना जय मां तुलसी|
इस प्रकार तुलसी विवाह की लोककथा पूर्ण हुई आइए अब शुरू करते हैं तुलसी विवाह की दूसरी और पौराणिक कथा |
दूसरी कथा -
एक बार शिव भगवान ने अपना तेज समुद्र में फ़ेक दिया |उस तेज़ से एक महा तेजस्वी बालक ने जन्म लिया| वह बालक आगे चलकर जालंधर के नाम से प्रसिद्द हुआ | उसकी राजधानी का नाम जालंधर नगरी था| उसका विवाह दैत्य राज कालनेमि की पुत्री वृंदा के साथ हुआ |अपनी सत्ता के अहंकार में वे देवी पार्वती को पाने की लालसा से कैलाश पर्वत पर गया |उसने अपनी माया से भगवान शिव का ही रूप धारण कर लिया और पार्वती जी के समीप गया परंतु देवी पार्वती ने अपने योग बन से उसे तुरंत ही पहचान लिया तथा वह अंतर्ध्यान हो गई | देवी पार्वती ने क्रोध में सारा वेदांत भगवान विष्णु को सुनाया जालंधर की पत्नी वृंदा एक पतिव्रता स्त्री थी | उसके पतिव्रत धर्म की शक्ति से जालंधर को ना तो मारा जा सकता था और न ही पराजित हो सकता था| इसलिए जालंधर का नाश करने के लिए वृंदा का पति धर्म भंग करना बहुत ही जरूरी था| इसी उद्देश्य से भगवान विष्णु एक ऋषि का वेश धारण करके वन में जा पहुंचे जहां वृंदा अकेली भ्रमण कर रही थी |भगवान श्री हरि के साथ दो मायावी राक्षस भी थे| जिन्हें देखकर वृंदा भयभीत हो गई | ऋषि ने वृंदा के सामने पल भर में ही दोनों राक्षसों को भस्म कर दिया| उनकी शक्ति देखकर वृंदा ने कैलाश पर्वत पर महादेव के साथ युद्ध कर रहे अपने पति जालंधर के बारे में पूछा ऋषि ने अपनी माया जाल से एक वानर को प्रकट किया और वानर के हाथ में जालंधर का सिर था और दूसरे हाथ में शरीर| अपने पति यह दशा देखकर वृंदा होश खो बैठी | उन्होंने ऋषि रूपी भगवान से विनती की कि वह उसके पति को जीवित करें |भगवान ने अपनी माया से उन्हें जालंधर का सिर धड़ से जोड़ दिया परंतु वह स्वयं भी उसी शरीर में प्रवेश कर गए | वृंदा को इस बात का जरा भी आभास ना हुआ | जालंधर बने हुए भगवान के साथ वृंदा पति जैसा व्यवहार करने लगी | जिससे उसका असतीत्व भंग हो गया| ऐसा होते ही वृंदा का पति जालंधर युद्ध में मारा गया |इस सारी लीला के बारे में जब वृंदा को पता चला तो उसने क्रोधित होकर भगवान विष्णु को हृदय-हीन शीला होने का श्राप दिया| अपने भक्त के श्राप को विष्णु जी ने स्वीकार किया और शालिग्राम पत्थर बन गए सृष्टि के पालन हारी भगवान श्री हरि के पत्थर बन जाने से ब्रह्मांड में असंतुलन की स्थिति हो गई| यह देखकर सभी देवी- देवताओ ने वृंदा से प्रार्थना की कि वह भगवान विष्णु को श्राप मुक्त करें| वृंदा ने विष्णु जी को श्राप मुक्त करके स्वयं आत्मदाह कर लिया| जहां वृंदा भष्म हुई थी वहां तुलसी का पौधा उगा| भगवान विष्णु ने वृंदा से कहा कि वृंदा तुम हमें लक्ष्मी से भी अधिक प्रिय हो गई हो तुलसी के रूप में सदा मेरे साथ रहोगी| तब से हर साल कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन तुलसी विवाह किया जाता है|
जो मनुष्य तुलसी जी का शालिग्राम के साथ विवाह करवाते हैं| वह इस लोक में सुख प्राप्त कर अंत में मोक्ष को प्राप्त होते हैं इस प्रकार तुलसी विवाह की दोनों कथाएं पूर्ण | अगर यह कहानियाँ आपको पसंद आई तो अपने दोस्तों के साथ शेयर करिए |
Jai tulsi mata 🙇♂️
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