वह कौन थी
"अरे यार तुमसे झूठ थोड़े ही कह रहा हूँ कि वह लड़की रात मेरे साथ थी, उसने पार्टी में मेरे साथ नृत्य भी किया मेरे साथ खाना खाया है ।"
बस बस....अब मैं तुम्हारी बातें सुन चुका हूँ, वास्तव में या तो तुझे कोई ब्रह्म हो गया है या फिर तुम दिन में ही सपने देखने लगे हो । वह कोई हवा तो नहीं जो फुर्र से उड़ गई।
वह कौन थी ?
हां...हां, रमेश मैं तुमसे पूछता हूँ कि वह कौन थी जो रात तुम्हारे जन्मदिन की पार्टी में मेरे साथ नाचती रही है । मोटी-मोटी आंखों वाली गोरे-गोरे गाल, घनेरी जुल्फे, लम्बा कद भरा हुआ शरीर भरे नितम्ब, रसीले होंठ....वह खाली सुन्दर ही नहीं बल्कि अतिसुन्दर थी।
बस-बस अब यह शायरी तो पुरी हो चुकी अब तुम यह बताओ उसका नाम क्या था ?
महताब !
महताब, नाम की कोई लड़की न तो मेरी पार्टी में आई है और न ही मैंने कभी यह नाम सुना है।
तो क्या मैं उसे दिल्ली से साथ लेकर आया था जो उसके इशारो पर घण्टा भर नाचता रहा हूँ।
अरे शरीफ तू कल दिल्ली से आया और आते ही तुझे एक लड़की भी मिल गई जो तेरे साथ डांस करती रही । तेरे साथ घण्टों बातें भी करती रही। यह बात है कभी ऐसा संभव हो सकता है।
मैं जानता हूँ राजेश तुम मेरी बात पर विश्वास नहीं करोगे मगर इतना तुम जानते हो कि कल ईद थी।
हाँ सेवईयां जो खाई थी अपनी अम्मी जान के हाथों की बनी हुई थी । मैं कैसे भूल
सकता हूँ।
तो बस फिर मैं खदा की कसम खाकर कहता हूँ कि वह मुझे कल रात ही मिल और उसने मुझसे यह भी कहा कि मैं तो आज तुमसे ईद की दावत लेकर ही रहुँगी
कमाल है यार ! मेरी तो समझ से यह कुछ बाहर है । मैं तो बार-बार यह सोना हूँ कि वह कौन थी?
देखो शरीफ ! यदि हम एक दूसरे से यही पूछते रहे कि वह कौन थी तो कैसे काम चलेगा फिर इसका लाभ हमें ही क्या ? मेरे विचार से तो अब तुम उसे भूल जाओ तो अधिक अच्छा नहीं.....ऐसा कभी नहीं हो सकता । मैं उसे भूल नहीं सकता । उसे भूलने का अर्थ है, अपने को भूलना अब तो मैं उसके घर जाऊँगा ।
घर और वह किसी लड़की के । अरे मियां तुम्हारा दिमाग तो ठीक है या फिर जवानी में ही सठिया गये हो । बम्बई है यहाँ पर किसी लड़की का घर ढूंढना इतना आसान नहीं है।
जिस घर में रात महताब को छोड़कर आया हूँ और ढूंढने में भला मुझे क्या कठिनाई हो सकती है।
शरीफ ! तुम क्या कह रहे हो ? क्या तुमने उस लड़की का घर देखा है। अफसोस केवल देखा ही नहीं मैं स्वयं उसे रात टैक्सी में उसके घर तक छोड़कर आया हूँ।
मान गये गुरू वास्तम में ही गुरू हम चेले हैं । मैं तो समझता था कि तुम बहुत सीधे-सादे आदमी हो यार । तुम तो छुपे रूस्तम निकले । एक ही रात में उसके घर तक जा पहुंचे।
राजेश ! लोग तो आजकल रात-रात में शादियां कर लेते हैं । मेरा तुम्हें उसके घर तक पहुंचना ही विचित्र नजर आ रहा है ।
लगता है यार तुम्हें प्रेम रोग लग गया है ।
ऐसी ही समझ लो मगर अब यह बात भी निश्चित है कि मैं महताब के बिना नहीं रह सकता । उसने तो मुझ पर ऐसा जादू कर दिया है कि शायद उसके बिना आज डिनर भी नहीं लूंगा।
मगर ताली एक हाथ से नहीं बजती । उसने भी मुझसे भी कहा था कि मैं कल डिनर तुम्हारे साथ ही लूंगी।
साले चोरी-चोरी पूरी अलिफ लैला लिख डाली और मुझसे बात तक नहीं की। राजेश ने उसकी पीठ पर जोर से हाथा मारते हुए कहा?
यूं ही समझ लो।
तो फिर डिनर की तैयारी करो और उसका इन्तजार करो। जो मजा इन्तजार में है । सो वसले यार में नहीं।
बैठे-बैठे अभी आती ही होगी । मगर इस समय घड़ी में आठ बज रहे हैं। डिनर का वक्त हो चुका है । कहीं ऐसा न हो कि तुम भूखे ही मरो ।
यदि ऐसी बात है तो मैं उसे घर से साथ ले लूंगा।
मगर डिनर लूंगा तो अपनी महताब के साथ ।
हां मजनूं हो तो ऐसा ! वैसे तुम बुरा न मानों तो मैं केवल उसके घर तुम्हारे साथ चल सकता हूँ।
क्यों डिनर क्यों नहीं क्या कोई गैर हो ।
मै। कबाब में हड्डी नहीं तुम तो कबाब के साथ चटनी प्याज का काम दोगे.... अब अपनी बक-बक बन्द करो और चलो समय काफी हो चुका है।
यदि तुम्हारी यही इच्छा है तो मैं चलता हूँ........।
यह हूई न कोई बात । शरीफ ने उसका हाथ पकड़कर जोर से दबाया फिर दोनों मित्र घर से बाहर निकल आये । नाके पर आते ही उन्हें टैक्सी चालक को बोलकर दोनों पिछली सीट पर बैठ गये। टैक्सी तेज गति से चलती हुई थोड़ी देर में ही भिड़ी बाजार पहुंच गई थी । एक गली के नुक्कड़ पर टैक्सी को रूकने के लिए कहा गया । राजेश ने मीटर देखकर टैक्सी वाले को बिल दिया ।
शरीफ पर तो जैसे इश्क का भूत सवार हो गया था ।
उसे यह भी याद न रहा कि टैक्सी का बिल भी देना है । राजेश उसके पीछे-पीछे था। शरीफ इतनी तेजी से चल रहा था जैसे भाग रहा हो । राजेश को भागकर ही उसे पकड़ना पड़ा । एक पुराने मकान के आगे जाकर शरीफ रूक गया। कुछ सोचने के पश्चात् वह बोला देखो राजेश मकान तो यही है लेकिन उसे आवाज कैसे दी जाए।
क्यों बेटे चुमाद रूक गये न किनारे पर आकर । अरे यार यह मजाक करने का वक्त नहीं है । जल्दी से कोई रास्ता बताओ ।
रास्ते के बच्चे ! यदि तू कल रात ही उसके घर गया था। जाकर उसकी माँ और बाप से मिल लेता तो इतना बड़ा लफड़ा काहे होता।
मगर अब क्या करें ? अन्दर तो सीधे जा नहीं सकते । घण्टी का बटन दबाओ, कोई तो बाहर आयेगा ही । फिर बात कर ही लेंगे|
शरीफ ने कांपते हुए हाथ से घण्टी का बटन दबाया और एक ओर खड़ा हो कर आने वाला का इन्तजार करने लगा । उसे उम्मीद थी कि महताब उसी का इन्तजार कर रही होगी । वह घण्टी की आवाज सुनते ही बाहर आ जायेगी।
थोड़ी देर के पश्चात् ही एक अधेड़ उम्र की औरत पर्दे को उठाकर बाहर आई पर राजेश और शरीफ को अपने घर के बाहर देखकर आश्चर्य से पूछा।
आप किससे मिलना चाहते हैं।
तभी राजेश ने आगे होकर कहा-देखो मौसी यह मेरे मित्र शरीफ हैं हम दोनों महताब के साथ कॉलेज में इकट्ठे पढ़ते थे । कल इन्हें महताब मिली थी। किसी जरूरी काम के लिए मिलने का वादा किया था......इसलिए यह आगे की बात राजेश के मुंह से नहीं निकली।
बेटे शरीफ आप मेरी बेटी महताब की बात कर रहे हैं। औरत के गले में आवाज़ फँस गई थी। हाँ मौसी मैं महताब की ही बात कर रहा हूँ। वह तुम्हें कब मिली थी। कल ही रात को तुम क्या कह रहे हो कि महताब तुम्हें कल मिली थी ?
हाँ मौसी ? उसने मुझे आपके हाथों की बनी ईद की सेवईयां भी खिलाई थीं । मैंने उसे ईद मुबारक भी दी थी।
वह औरत अपने हाथ पर हाथ रखे टिकटिकी बांधे शरीफ की ओर देख रही थी। जैसे उसने कोई अनहोनी बात सुन ली । फिर दुआ के लिए अपने दोनों हाथ आकाश की ओर उठाकर कलमा पढ़ती हुई बोली
बेटा शरीफ ! क्या तुम महताब को प्यार करते हो। मौसीजान मुझे बड़ो के आगे गुस्ताखी करते शर्म आती हैं। बस-बस आप से क्या कहूँ।
बेटा मैं समझ गई हूँ मगर इस समय यदि तुम्हें महताब से मिलना है तो कुछ दूर तक मेरे साथ चलना होगा
हाँ..हाँ.....मौसी आप जहां भी कहोगी, हम चल सकते हैं, शरीफ का दिल अन्दर ही अन्दर खुशी से नाच उठा।
बेटा मैं जरा अन्दर से अपना बुर्का ले आऊँ, तुम लोग बाहर से एक टैक्सी ले लो।
थोड़ी देर पश्चात् ही वह बुर्का ओढ़कर आ गई । एक टैक्सी को रोककर वे तीनो उसमें बैठ गये।
बेटे जरा कब्रिस्तान तक ले लेना।
कब्रिस्तान का नाम सुनते ही राजेश और शरीफ के रोंगटे खड़े हो गये थे। फिर उन्होंने अपने मन को समझाने के लिए यह सोचा कि हो सकता है महताब कब्रिस्तान के पास अपने किसी रिश्तेदार के पास गई हो ।
टैक्सी कब्रिस्तान के बाहर जाकर रूकी, तो वे दोनों उस औरत के पीछे-पीछे कब्रिस्तान के अन्दर चले गये । उनकी समझ में कुछ भी नहीं आ रहा था, इस औरत पर उन्हें कुछ सन्देह हो रहा था कहीं यह पागल तो नहीं हो गई।
वह एक कब्र के पास जाकर रूकी और शरीफ से बोली-बेटा यह सामने पत्थर पर महताब का नाम लिखा है इसे पढ़ लो यह पिछले साल ईद के दिन ही खुदा को प्यारी हो गई थी। क्योंकि वह कॉलेज के अपने किसी सहपाठी से प्यार करती थी। इसलिए उसकी रूह भटकती फिरती है, वह ईद पर अवश्य आई होगी, उससे मिलकर अपने प्यार को याद करके फिर इसी कब्र में आकर सो गई।
शरीफ ने देखा जो फूलों का गुलदस्ता रात उसने महताब को दिया था, वह उसकी कब्र पर पड़ा था , उसे यह सब देख विश्वास नहीं हो रहा था । इससे पहले कि वह चक्कर खाकर गिर पड़ता । राजेश ने आगे बढ़कर उसे थाम लिया ।
No comments: